पाकिस्तान की सेना ने प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी को सेना और आईएसआई की आलोचना करने के लिए ‘गंभीर परिणाम’ की चेतावनी दी, लेकिन गिलानी ने तनिक भी न झुकते हुए रक्षा सचिव को बर्खास्त कर दिया. गिलानी ने कहा कि पाकिस्तान में लोकतंत्र को कोई खतरा नहीं है क्योंकि यह अब इसकी ‘तकदीर’ बन चुका है.
उधर, अमेरिका के समाचार पत्र ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने पाकिस्तान के सैन्य अधिकारियों के हवाले से खबर दी है कि सेना नए रक्षा सचिव के साथ सहयोग नहीं करेगी.
तेजी से बदलते घटनाक्रम के तहत सेना ने प्रधानमंत्री के खिलाफ एक संक्षिप्त बयान जारी किया जिसमें आरोप लगाया कि उनके आरोपों के बेहद गंभीर निहितार्थ हो सकते हैं जिसके संभावित नतीजे बेहद खतरनाक हो सकते हैं.
नए संकट से करीब साढ़े चार साल पुरानी गिलानी सरकार को सत्ता से बेदखल किए जाने को लेकर अटकलों का बाजार गर्म होने के बीच प्रधानमंत्री ने रक्षा सचिव लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) नईम खालिद लोधी को बर्खास्त कर दिया. लोधी को सेना प्रमुख अशफाक परवेज कयानी का करीबी समझा जाता है.
सरकार ने रावलपिंडी स्थित सैन्य इकाई के नए कमांडर के तौर पर ब्रिगेडियर सरफराज अली को नियुक्त किया है. इस इकाई ने पूर्व में हुए सैन्य तख्तापलटों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
सेना की ओर से असामान्य चेतावनी गिलानी द्वारा चीनी सरकारी पोर्टल को दिए गए साक्षात्कार में यह बात कहे जाने के दो दिन बाद आई है जिसमें कहा गया था कि सरकार की अनुमति हासिल किए बिना उच्चतम न्यायालय में मेमो प्रकरण में हलफनामा दायर कर कयानी और पाशा ने असंवैधानिक और अवैध तरीके से काम किया.
सेना के वक्तव्य में कहा गया, ‘माननीय प्रधानमंत्री ने सीओएएस (सेना प्रमुख) और डीजी आईएसआई (आईएसआई प्रमुख) के खिलाफ जो आरोप लगाए हैं उससे ज्यादा गंभीर आरोप नहीं हो सकते. दुर्भाग्य की बात है कि अधिकारियों पर देश के संविधान के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है.’ कयानी ने अपने महत्वपूर्ण सैन्य सहायकों की सेना मुख्यालय में एक बैठक बुलाई और उम्मीद की जाती है कि वह कोर कमांडरों के साथ कल हालात की समीक्षा करेंगे.
प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से जारी एक वक्तव्य में बताया गया कि गिलानी ने गंभीर कदाचार और अवैध कार्रवाई के लिए रक्षा सचिव को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर दिया. वक्तव्य में कहा गया है कि लोधी के खिलाफ कार्रवाई राज्य संस्थाओं के बीच गलतफहमी पैदा करने को लेकर की गई है.
वक्तव्य में बताया गया कि कैबिनेट सचिव नर्गिस सेठी को रक्षा सचिव का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है. सेठी को गिलानी का करीबी समझा जाता है.
सरकार ने हाल में लोधी को तब कारण बताओ नोटिस जारी किया था जब उन्होंने उच्चतम न्यायालय में एक हलफनामा दायर करते हुए दावा किया था कि असैन्य प्रशासन का सेना और आईएसआई के संचालनात्मक मामलों पर कोई नियंत्रण नहीं है. उन्होंने हलफनामे में यह भी कहा था कि असैनिक सरकार का सेना और आईएसआई पर सीमित नियंत्रण है.
शाम को पाकिस्तानी चैनलों पर खबर प्रसारित की गई कि गिलानी राष्ट्र को संबोधित करेंगे लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय के प्रवक्ता ने इसका तुरंत खंडन किया.
संकट में घिरी गिलानी सरकार पहले ही न्यायपालिका के साथ टकराव की मुद्रा में है. उच्चतम न्यायालय ने कल चेतावनी दी थी कि अगर राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को दोबारा शुरू करने के उसके आदेश पर कार्रवाई करने में सरकार विफल रही तो राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है. इससे पहले जरदारी ने उन खबरों का खंडन किया जिसमें कहा गया था कि उन्होंने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और उसके सहयोगी दलों की बैठक में अपने पद से इस्तीफा देने की पेशकश की थी.
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने इस अफवाह को खारिज कर दिया कि लोकतंत्र को किसी तरह का खतरा है. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र अब पाकिस्तान की ‘तकदीर’ बन गया है.
गिलानी ने कहा, ‘सीनेट का चुनाव वक्त पर कराया जाएगा. पाकिस्तान में लोकतंत्र बना रहेगा. अब लोकतंत्र पाकिस्तान की तकदीर में है और सभी संस्थाएं सरकार के तहत काम करेंगी.’ उन्होंने कहा, ‘मेरी सरकार किसी के खिलाफ नहीं है. हमने जांच कराई और फिर रक्षा मंत्रालय ने लिखित में जवाब लिया और इसे कानून एवं न्याय मंत्रालय को भेजा गया. सभी का पक्ष जानने के बाद हमारे पास इस कदम के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं रह गया था.’
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने कहा, ‘सेना प्रमुख और आईएसआई महानिदेशक ने उच्चतम न्यायालय में जवाब दाखिल करते समय रक्षा मंत्री को भरोसे में नहीं लिया और कानून मंत्रालय को भी अलग करके आगे बढ़ गए.’
सेना और आईएसआई प्रमुख के सरकार से अनुमति हासिल किए बिना मेमोगेट प्रकरण पर शीर्ष अदालत में हलफनामा दायर करने की बात गिलानी द्वारा कहे जाने के दो दिन बाद शक्तिशाली सेना ने कहा कि प्रधानमंत्री ने जो आरोप लगाए उससे ज्यादा गंभीर और कोई आरोप नहीं हो सकता. गिलानी ने चीन के सरकारी समाचार पत्र ‘पीपुल्स डेली’ के ऑनलाइन संस्करण को सोमवार को दिए गए साक्षात्कार में यह टिप्पणी की थी.
उन्होंने कहा कि सेना प्रमुख कयानी और आईएसआई प्रमुख पाशा ने सक्षम प्राधिकार की मंजूरी के बिना कथित मेमो को लेकर उच्चतम न्यायालय में जवाब दाखिल किया. उन्होंने कहा कि इन दोनों जवाबों के लिए सक्षम प्राधिकार से मंजूरी के लिए रक्षा मंत्रालय की ओर से कोई औपचारिक प्रस्ताव नहीं भेजा गया था.
गिलानी ने कहा था कि रक्षा मंत्री से जवाबों के लिए कोई मंजूरी हासिल नहीं की गई थी और सरकारी पदाधिकारी द्वारा सरकार की पूर्व मंजूरी के बगैर की गई कोई भी आधिकारिक कार्रवाई ‘असंवैधानिक और अवैध’ है.
सेना के वक्तव्य में दावा किया गया कि गिलानी की टिप्पणी में कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों पर गौर नहीं किया गया है.
उसने साथ ही दावा किया कि सेना और आईएसआई प्रमुख उच्चतम न्यायालय को भेजे गए जवाब के लिए मंजूरी हासिल करने के लिए जिम्मेदार नहीं थे.
सेना के वक्तव्य में कहा गया है कि कथित मेमो के संबंध में शीर्ष अदालत में दायर याचिका में सेना और आईएसआई प्रमुख को प्रतिवादी के तौर पर शामिल किया गया था और अदालत ने प्रतिवादियों को सीधे नोटिस दिया था. वक्तव्य में कहा गया कि इस पर अटॉर्नी जनरल ने कोई आपत्ति नहीं जताई थी. सेना प्रमुख और आईएसआई प्रमुख का जवाब अटार्नी जनरल के जरिए शीर्ष अदालत को सौंपने के लिए रक्षा मंत्रालय के पास भेजा गया था.
अटॉर्नी जनरल और शीर्ष अदालत को एक पत्र भेजा गया था जिसमें उन्हें सूचित किया गया था कि सेना और आईएसआई प्रमुख के जवाब रक्षा मंत्रालय को सौंप दिए गए हैं.
सेना के वक्तव्य में कहा गया, ‘इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि प्रतिवादियों के वक्तव्य की प्रतियां सीधे शीर्ष अदालत को नहीं भेजी जा रही हैं.’ वक्तव्य में कहा गया, ‘जल्दी से आगे बढ़ने और सक्षम प्राधिकार की मंजूरी लेने की जिम्मेदारी उसके बाद प्रतिवादियों पर नहीं बल्कि संबद्ध मंत्रालयों पर है.’ सेना ने इस बात को रेखांकित किया कि प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख के बीच गत 16 दिसंबर को हुई बैठक के बाद गिलानी ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा था कि नोटिस के संबंध में शीर्ष अदालत को सौंपा गया जवाब उचित माध्यम से और कामकाज के नियमों के अनुरूप था.
वक्तव्य में कहा गया, ‘माननीय उच्चतम न्यायालय के मामले पर तीन हफ्ते से अधिक समय से सुनवाई किए जाने के दौरान किसी भी समय जवाब की वैधता और उसकी संवैधानिक स्थिति के बारे में उससे पहले या बाद में कोई आपत्ति नहीं जताई गई.’ सेना ने दावा किया कि उच्चतम न्यायालय को दिए गए अपने जवाबों में सेना और आईएसआई प्रमुख पर जिम्मेदारी थी कि वे मेमो प्रकरण पर उन्हें जो भी तथ्य पता है उसे बताएं.
उसमें कहा गया कि अधिकार क्षेत्र और याचिकाओं की विचारणीयता के मुद्दे में शीर्ष अदालत और सरकार शामिल है.
वक्तव्य में कहा गया, ‘ऐसी कोई भी अपेक्षा कि :सेना प्रमुख: तथ्य नहीं बताएंगे यह न तो संवैधानिक है और न ही कानून सम्मत है. राज्य और संविधान के प्रति निष्ठा (सेना प्रमुख) के लिए हमेशा सर्वोच्च तौर पर महत्वपूर्ण रही है और रहेगी, जिन्होंने इस मामले में संविधान का पालन किया है.’ सेना और सरकार ने मेमो प्रकरण पर शीर्ष अदालत में एक-दूसरे से भिन्न रुख अपनाया था. गौरतलब है कि उस कथित मेमो में गत मई में अमेरिकी कार्रवाई में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद संभावित सैन्य तख्ता पलट को रोकने के लिए अमेरिका से मदद मांगी गई थी.
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